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शनिवार, 28 नवंबर 2009

विकिपीडिया सियासी बकवास का...आईने में लिब्रहान


विवेक मिश्रा

रात में समाचार देख कर सोया की संसद में गन्ने के उचित मूल्य के मुद्दे पर विपक्ष ने किसानो को सड़क पर उतारकर सरकार को मुश्किल में डाल दिया है और कल सरकार ज़रूर किसानो के लिए कुछ करेगी लेकिन कहते है कल किसने देखा है ,आम आदमी तो नही देख सकता क्यूंकि वह सियासत का मोहरा जो है खैर मै मुद्दे से भटक रहा हूँ,लेकिन लगता है सरकार को मुद्दे से भटकने का मुद्दा चाहिए रहता है कांग्रेस सरकार किसानो की मसीहा जो ठहरी सुबह हुई संसद का माहौल और मिज़ाज दोनों बदला बदला दिखा आज अडवानी ख़ुद ही एक समाचार पत्र लिए प्रवेश कर रहे थे यह वही समाचारपत्र था जो जसवंत सिंह के लिए हाल में अभिव्यक्ति की स्वंत्रता का साधन बना था, समाचारों में हेडिंग बन रही थी बोतल से फिर जिन्ना का जिन्न निकला खैर जसवंत सिंह की अभिव्यक्ति चल निकली और हमेशा की तरह विवादित चीज़ हिट फोर्मुले पे हिट हुई विवादित शब्द से ध्यान आया संसद में उस दिन अडवानी जी के हाथो में जो समाचार पत्र था उसके पहले पेज पे ही विवादित ढांचा यानी बाबरी १९९२ के आरोपी लगभग ६८ जिंदा जिन्नों के बारे में छपा था हमारी विपक्ष ने संसद के शुरू होते ही किसान और गन्ना दोनों को ताख पे रखा और सरकार से लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट जो सत्रह सालो से बोतल में कैद थी को पेश करने की मांग कर दी ,उधर समाचार चैनेल से लेकर पूरी मीडिया ने बयार बहने की दिशा को भांपकर किसान और गन्ने को स्क्रीन से बाहर फेककर अडवानी एंड संस की जिन्न टीम को अपने स्क्रीन में कैद कर भूखे किसानो को खाने को परोस दिया मेरी नीद खुलने के बाद और रात में बेड पर जाते समय तक इन चीजो ने मुझे बैचैन कर दिया की अब गन्ना किसानो का ? समझ में आया की सुगर लाब्बिंग ने किसानो के नेता होने का दावा करने वालो को इतनी मीठी चाय पिला दी है की वे देश को आज़ाद कराने वाले नेताओं पर भी संसय करने लगे है साथ यह भी कह रहे है की इस मीठी चाय पर कौन न कुर्बान हो जाए ,मुझे सैफ अली खान की तरह इन किसान नेताओं का भविष्य भी कुर्बान होता दिख रहा है टाटा के चाय उत्पाद ने नया स्लोगन भी निकाला है चाय पिलाओ घूस नही लेकिन टाटा वाले भूल गए की यदि चाय मीठी हुई तो ?मैंने बहूत बकवास कर ली क्या करू आदत से मजबूर जो हूँ कुछ लोग यह भी कहते है आंकड़े बताता नही केवल मुंह खोला और जो आया भक से कह दिया ,लिख दिया

फिलहाल एक सर्व विदित तथ्य आपको बता दूँ की समाचार पत्र का नाम इंडियन एक्सप्रेस था अब इसने लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट स्वय खोजी या इससे खोज्वाई गयी खोज का विषय है यह हमारे किसान के सबसे वफादार नेता और हम सभी भारतीय किसानो के बीच पढ़े लिखे सरदार माफ़ कीजियेगा सरकार मनमोहन सिंह का कहना है जांच लिब्रहान की तरह १७ का दूना ३४ साल में न आए बस यही दुआ है मेरी और सियासत के जिन्नों से अनुरोध है की किसानो के बचे गन्ने तो कम से कम न चूसो घर जाओ और किसानो के खून को चूस कर जो फ्रूटमिक्सेर मंगवाया है मंहगे फलो को उसमे डाल कर रस निकालो और गालो को लाल करो ......जारी रहेगा

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